Sunday, May 12, 2013

'ऐ माँ !'

जब पहली बार आँख खुली तो 
गोदी में मुझे थामे 
दुनिया से परिचित कराने को 
एक मुस्कान लिए 
तू थी वहाँ !
जब शब्दों के अभाव में खाने को रोया 
तो किलकारियों को संगीत समझ 
निवाला अपने हाथ का मुझे खिलाने को 
एक मुस्कान लिए 
तू थी वहाँ !
बढती उम्र के साथ कदम जब लड़खड़ाने लगे 
हर मोड़ पर, भरपूर स्नेह के साथ 
अपने कोमल हाथों से मुझे थामने को 
एक मुस्कान लिए 
तू थी वहाँ !
और अब भी हर पल सोने को मेरे 
अपनी गोद लिए 
आँसुओं को मेरे पोंछने को, 
जीवन को मेरे, वात्सल्य से सींचने को 
एक मुस्कान लिए
तू है वहाँ !

तभी तो माँ 
तेरी क़दमों की आहट भर से, 
तेरे होने को पहचान लेता हूँ  ।