'ऐ माँ !'
जब पहली बार आँख खुली तो
गोदी में मुझे थामे
दुनिया से परिचित कराने को
एक मुस्कान लिए
तू थी वहाँ !
जब शब्दों के अभाव में खाने को रोया
तो किलकारियों को संगीत समझ
निवाला अपने हाथ का मुझे खिलाने को
एक मुस्कान लिए
तू थी वहाँ !
बढती उम्र के साथ कदम जब लड़खड़ाने लगे
हर मोड़ पर, भरपूर स्नेह के साथ
अपने कोमल हाथों से मुझे थामने को
एक मुस्कान लिए
तू थी वहाँ !
और अब भी हर पल सोने को मेरे
अपनी गोद लिए
आँसुओं को मेरे पोंछने को,
जीवन को मेरे, वात्सल्य से सींचने को
एक मुस्कान लिए
तू है वहाँ !
तभी तो माँ
तेरी क़दमों की आहट भर से,
तेरे होने को पहचान लेता हूँ ।