Tuesday, July 3, 2012

'भारत' एक इमारत 


लम्बे अरसे पहले  
शाही अंदाजों में 
एक इमारत का पदार्पण हुआ,
भव्य, संपन्न और 
बेहद शालीन 
उस ईमारत ने प्रषिधि की 
ऊँचाइयों को छुआ।
जलन के प्रभाव मे
लोगों ने इसे हड़पने की 
भरषक कोशिश की,
ब्रितानी लोगों ने इसे 
अपना बनाने की साजिश की।
फिर भी लोगों का 
लगाव नहीं टूटा,
तो विवश हो ब्रितानियों ने
इसे भरपूर लूटा।
पर रंगत कम ना हुई
तो भला जलन भी कैसे जाती।
भाइयों को लडवा 
फूट डाल दी,
और ईमारत को हडपने की 
अपनी मंशा टाल दी।

फिर जो मचा भयानक कोहराम 
भाइयों का साथ रहना हो गया हराम।
सहमती से दोनों ने 
ईमारत को बाँट लिया,
खूबसूरती तो छंटी ही 
पर लगा जैसे 
ईमारत का कलेजा ही काट लिया।
फिर भी अपने हिस्से को 
बेहतर बनाने की होड़ ने
एक बेहतर भविष्य की 
राह सुझायी,
पर तब भी लालच भरी
फितरत ना शरमाई।
अपने ही घर मे चोरी-चाकरी, 
लूटपाट को न बंद होने दिया,
अपने ही माँ-बाप, भाई-बन्धु को 
ना चैन से सोने दिया।

पर उम्मीद तब भी सलामत थी,
भले ही आने वाली कयामत थी।
धीरे-धीरे सबको 
अपने से मतलब होने लगा,
सियासी राज के चलते 
नेक आदमी सोने लगा।

बात ये इतनी भी पुरानी नहीं,
मेरी कही, कोई काल्पनिक कहानी नहीं ।

जर-जर हो चुकी है ये ईमारत
पता नहीं किस पल गिर जाये,
कोशिश बहुत करता हूँ
कहीं से तोड निकले इन सियासी हमलों का 
ताकि ये झुकी ईमारत फिर संभल जाये।
आखिर घर है ये मेरा, 
शाम भी यहीं होनी है तो 
देखना भी है यहीं सवेरा।
फरियाद करता हूँ 
उस प्रभु से 
की काले बदल छंट जाये,
बची-खुची ईमारत भी 
कहीं ना बाँट जाये।
कहीं लूट न ले जालिम 
इसकी सुन्दरता, 
फिर से आ जाये वो 
भव्य-संपन्न-एकता।

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