Thursday, June 7, 2012

कवि की कल्पना 


कल्पनाएँ, हकीकत के धरातल पर,
उतरी  है, कलम के सहारे,
जब रचे है किसी लेखक-कवि ने,
स्वांग, अद्भुत-विचित्र-न्यारे।

थे बेरंगी मिजाज़ मे गोते लगाते, 
हतोत्साहित, ख्वाब कुछ कुँवारे, 
जम्हाई लेते, ना राह  तकते,
वीरान-म्लान, तट हमारे। 

कवि तेरी प्रत्यय-उपसर्ग की क्रीड़ा ने, 
अलंकृत कर, ख्वाब है सवारे,
उन्मोदित-हर्षित, पूरवी की राग से, 
देखो, पुकारते ये किनारे ।

बेजान-नीरस  जिंदगी की जदोजहद मे,
नज़र किये है, कई अहसास  प्यारे,
कल्पनाओं ने कवि तेरी, बुने है,
स्वपन, विशिष्ट-मंजुल -प्यारे ।


1 comment:

  1. I'm not very much into poetry, but what you've written is a very nice read. Your hindi vocabulary is quite vast and you've used it aptly.

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